भारतवर्ष में रहने वाले अधिकांश लोगों का जीवन आज से नहीं वरन शताब्दियों से कृषि पर आधारित है। आज भी 60% से अधिक लोग कृषि एवं सम्बन्धित क्रियाकलापों के माध्यम से अपनी जीविका चलाते हैं। यह विदित है कि ग्रामीण क्षेत्रों में कर्षकों को खेती. की कटाई एवं बुआई के समय में ही रोजगार के सुअवसर प्राप्त होते हैं तथा इसके अतिरिक्त समय में ग्रामीण श्रम शक्ति प्रायः बेरोजगार हो जाती है। अतः इस विषम परिस्थिति में पशुपालन एवं दुग्ध व्यवसाय को एक महत्वपूर्ण सहायक व्यवसाय के रूप में अपनाना लाभप्रद है। राष्ट्रीय कृषि आयोग (1971) की अन्तरिम रिपोर्ट से यह स्पष्ट है कि डेयरी विकास का प्रसार प्रभाव कृषि विकास को अतिरिक्त लाभ प्रदान करता है। डेयरी क्रियाओं के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक एवं सामाजिक परिवर्तन लाया जा सकता है। कृषि के सर्वांगीण विकास एवं ग्रामीण क्षेत्र में समृद्धि के लिए अच्छे कार्य करने वाले तथा अधिक दुधारू पशुओं की देश में विशेष आवश्यकता है। भारत में विश्व की कुल पशु संख्या के 15% पशु हैं तथा पशु संख्या की दृष्टि से भारत का विश्व में प्रथम स्थान है। एक अनुमान के अनुसार स्वतन्त्रता के समय देश में 28.50 करोड़ पशु थे जिनकी संख्या पशुगणना के अनुसार 1996 में बढ़कर 44.2 करोड हो गयी। वर्ष 1996 की पशुगणना के अनुसार भारत में गाय, भैंस, ऊँट, बकरी आदि की संख्या विश्व की कुल संख्या का क्रमशः 14.8, 52.6, 7.9 एवं 4.3 प्रतिशत थी जो वर्ष 2019 की पशुगणना के अनुसार बढ़कर क्रमशः15.9, 55.2, 8.4 एवं 7.5 हो गई। गाय एवं भैंसों की संख्या में भारत का विश्व में प्रथम स्थान है। इसी प्रकार सम्पूर्ण पशुधन की दृष्टि से भी भारत का विश्व में प्रथम स्थान है एवं विश्व का एक तिहाई दुग्ध भारत में उत्पन्न होता है।