हर युग में महिलायों की स्थिति में उतर चढ़ाव आये है.भारतीय इतिहास के वैदिक युग में स्त्रियों की स्थिति सुद्धीढ़ थी. क्षत्रिय स्त्रियों को तो युद्ध में सारथ्य बनाने का भी अधिकार था. गृहस्वामिनी होने के बावजूद घर के कार्यों में सीमित न रहकर बाहर का कामकाज भी संभालती थी. लेकिन धीरे धीरे उनकी स्थिति ख़राब होती चली गए. भारत में ही नहीं बल्कि पुरे विश्व में स्त्रियों की स्थिति दयनीय थी. स्वंतंत्रता प्राप्ति के बाद स्त्रियों की स्थिति में सुधार लाने के लिए उनके अधिकारों जैसे स्वतंत्रता, समानता,शिक्षा और स्वस्थ्य पर बल दिया गया.भारतीय पारिवारिक संरचना ऐसी है जहाँ सुखी एवं अनुकूल दांपत्य जीवन रहने से आर्थिक स्वंत्रता के बिना भी स्वतंत्र रह सकती है. वास्तविक स्वंत्रता तो निर्णय लेने की स्वंत्रता है. कोई भी समाज या राष्ट्र स्त्री के सहयोग के बिना उन्नति के शिखर पर नहीं जा सकता है. स्त्री – पुरुष के सहयोग से ही बच्चे, परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व का हित संभव है.
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